याकूब का मल्लयुद्ध, याकूब और एसाव का मिलन (Jacob's Wrestling, Jacob and Esau's Reunion) - YISHU KA SANDESH

याकूब का मल्लयुद्ध, याकूब और एसाव का मिलन (Jacob's Wrestling, Jacob and Esau's Reunion)

याकूब का मल्लयुद्ध:-

                         22 उसी रात वह उठा और अपनी दोनों स्त्रियों, और दोनों दासियों और ग्यारहों लड़कों को संग लेकर घाट से यब्बोक नदी के पार उतर गया । 23 उसने उन्हें उस नदी के पार उतार दिया, वरन् अपना सब कुछ पार उतार दिया । 24 और याकूब आप अकेला रह गया; तब कोई पुरुष आकर पौ फटने तक उससे मल्लयुद्ध करता रहा । 25 जब उसने देखा कि मैं याकूब पर प्रबल नहीं होता, तब उसकी जाँघ की नस को छुआ; और याकूब की जाँघ की नस उससे मल्लयुद्ध करते ही करते चढ़ गई । 26 तब उसने कहा, "मुझे जाने दे, क्योंकि भोर होने वाला है," याक़ूब ने कहा, "जब तक तू मुझे आशीर्वाद न दे, तब तक मैं तुझे जाने न दूंगा ।'  27 और उसने याकूब से पूछा, “तेरा नाम क्या है ?" उसने कहा, “याक़ूब ।” 28 उसने कहा, “तेरा नाम अब याकूब नहीं, परन्तु इस्राएल होगा, क्योंकि तू परमेश्वर से और मनुष्यों से भी युद्ध करके प्रबल हुआ है । " 29 याकूब ने कहा, 'मैं विनती करता हूँ, मुझे अपना नाम बता ।" उसने कहा, “तू मेरा नाम क्यों पूछता है ? " तब उसने उसको वहीं आशीर्वाद दिया । 30 तब याकूब ने यह कहकर उस स्थान का नाम बीएल' रखा 'परमेश्वर को आमने-सामने देखने पर भी मेरा प्राण बच गया है ।" 31 पनीएल के पास से चलते-चलते सूर्य उदय हो गया, और वह जाँघ से लंगड़ाता था । 32 इस्राएली जो पशुओं को जाँघ को जोड़वाले जंघानस को आज के दिन तक नहीं खाते, इसका कारण यही है कि उस पुरुष ने याकूब को जाँघ के जोड़ में जंघानस को हुआ था ।

याकूब का मल्लयुद्ध

याकूब और एसाव का मिलन:-

                         1 याकूब ने आँखें उठाकर यह देखा कि एसाव चार सौ पुरुष संग लिये हुए चला आता है । तब उसने बच्चों को अलग अलग बाँटकर लिआ और राहेल और दोनों दासियों को सौंप दिया । 2 और उसने सब से आगे लड़कों समेत दासियों को, उसके पीछे लड़कों समेत लिआ को और सब के पीछे राहेल और यूसुफ को रखा, 3 और आप उन सब के आगे बढ़ा और सात बार भूमि पर गिर के दण्डवत् की, और अपने भाई के पास पहुँचा । 4 तब एसाव उससे भेंट करने को दौड़ा, और उसको हृदय से लगाकर, गले से लिपटकर चूमा; फिर वे दोनों रो पड़े । 5 तब उसने आँखें उठाकर स्त्रियों और बच्चों को देखा, और पूछा, "ये जो तेरे साथ हैं वे कौन हैं ?'' उसने कहा, "ये तेरे दास के लड़के हैं, जिन्हें परमेश्वर ने अनुग्रह करके मुझ को दिया है ।" 6 तब लड़कों समेत दासियों ने निकट आकर दण्डवत् किया; 7 फिर लड़कों समेत लिआ: निकट आई और उन्होंने भी दण्डवत् किया; अन्त में यूसुफ और राहेल ने भी निकट आकर दण्डवत् किया । 8 तब उसने पूछा, "तेरा यह बड़ा दल जो मुझ को मिला, उसका क्या प्रयोजन है ?" उसने कहा, "यह कि मेरे प्रभु की अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो ।" 9 एसाव ने कहा, "हे मेरे भाई, मेरे पास तो बहुत है; जो कुछ तेरा है वह तेरा ही रहे।" 10 याकूब ने कहा, "नहीं नहीं, यदि तेरा अनुग्रह मुझ पर हो, तो मेरी भेंट ग्रहण कर, क्योंकि मैं ने तेरा दर्शन पाकर, मानो परमेश्वर का दर्शन पाया है, और तू मुझ से प्रसन्न हुआ है । 11 इसलिये यह भेंट जो है तुझे भेजी गई है, ग्रहण कर; क्योंकि परमेश्वर ने मुझ पर अनुग्रह किया है, और मेरे पास बहुत है ।" जब उसने उससे बहुत आग्रह किया, तब उसने भेंट को ग्रहण किया ।12 फिर एसाव ने कहा, "आ, हम बढ़ चलें; और मैं तेरे आगे आगे चलूँगा।" 13 याकूब ने कहा, "हे मेरे प्रभु, तू जानता ही है कि मेरे साथ सुकुमार लड़के, और दूध देनेहारी भेड़-बकरियाँ और गायें हैं; यदि ऐसे पशु एक दिन भी अधिक हाँके जाएँ, तो सब के सब मर जाएँगे । 14 इसलिये मेरा प्रभु अपने दास के आगे बढ़ जाए, और मैं इन पशुओं की गति के अनुसार जो मेरे आगे हैं, और बच्चों की गति के अनुसार धीरे धीरे चलकर सेईर में अपने प्रभु के पास पहुँचूँगा ।" 15 एसाव ने कहा, "तो अपने साथियों में से मैं कई एक तेरे साथ छोड़ जाऊँ ।" उसने कहा, "यह क्यों ? इतना ही बहुत है कि मेरे प्रभु के अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर बनी रहे ।" 16 तब एसाव ने उसी दिन सेईर जाने को अपना मार्ग लिया । 17 परन्तु याकूब वहाँ से निकल कर सुक्कोत को गया, और वहाँ अपने लिये एक घर, और पशुओं के लिये झोपड़े बनाए । इसी कारण उस स्थान का नाम सुक्कोत पड़ा । 18 याकूब जो पद्दनराम से आया था, उसने कनान देश के शकेम नगर के पास कुशल क्षेम से पहुँचकर नगर के सामने डेरे खड़े किए । 19 और भूमि के जिस खण्ड पर उसने अपना तम्बू खड़ा किया, उसको उसने शकेम के पिता हमोर के पुत्रों के हाथ से एक सौ कसीतों में मोल लिया । 20 वहाँ उसने एक वेदी बनाकर उसका नाम एल-एलोहे-इस्राएल रखा ।

    जय मसीह की । कविता पोरिया        

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