याकूब का एप्रैम और मनश्शे को आशीर्वाद देना ( ) - YISHU KA SANDESH

याकूब का एप्रैम और मनश्शे को आशीर्वाद देना ( )

याकूब का एप्रैम और मनश्शे को आशीर्वाद देना:-

                                 1 इन बातों के पश्चात् किसी ने यूसुफ से कहा, "सुन, तेरा पिता बीमार है ।” तब वह मनश्शे और एप्रेम नामक अपने दोनों पुत्रों को संग लेकर उसके पास चला । 2 किसी ने याक़ूब को बता दिया, "तेरा पुत्र यूसुफ तेरे पास आ रहा है," तब इस्राएल अपने को सम्भालकर खाट पर बैठ गया । 3 और याकूब ने यूसुफ से कहा, "सर्वशक्तिमान् ईश्वर ने कनान देश के लूज नगर के पास मुझे दर्शन देकर आशीष दी, 4 और कहा, 'सुन, मैं तुझे फलवन्त करके बढ़ाऊँगा, और तुझे राज्य राज्य की मण्डली का मूल और तेरे पश्चात् तेरे वंश को यह देश दूँगा, जिससे कि वह सदा तक उनकी निज भूमि बनी रहे ।' 5 और अब तेरे दोनों पुत्र, जो मिस्र में मेरे आने से पहले उत्पन्न हुए हैं, वे मेरे ही ठहरेंगे; अर्थात् जिस रीति से रूबेन और शिमोन मेरे हैं, उसी रीति से एप्रैम और मनश्शे भी मेरे ठहरेंगे । 6 और उनके पश्चात् तेरे जो सन्तान उत्पन्न हो वह तेरे तो ठहरेंगे; परन्तु बँटवारे के समय वे अपने भाइयों ही के वंश में गिने जाएंगे । 


7 जब मैं पदान से आता था, तब एप्राता पहुँचने से थोड़ी ही दूर पहले राहेल कनान देश में, मार्ग में, मेरे सामने मर गई और मैं ने उसे वहीं, अर्थात् एप्राता जो बैतलहम भी कहलाता है, उसी के मार्ग में मिट्टी दी ।" 8 तब इस्राएल को यूसुफ के पुत्र देख पड़े, और उसने पूछा, "ये कौन हैं ?" 9 यूसुफ ने अपने पिता से कहा, “ये मेरे पुत्र हैं, जो परमेश्वर ने मुझे यहाँ दिए हैं।" उसने कहा, "उनको मेरे पास ले आ कि मैं उन्हें आशीर्वाद दूं ।" 10 इस्राएल की आँखें बुढ़ापे के कारण धुन्धली हो गई थीं, यहाँ तक कि उसे कम सूझता था । तब यूसुफ उन्हें उनके पास ले गया और उसने उन्हें चूमकर गले लगा लिया । 11 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, "मुझे आशा न थी कि मैं तेरा मुख फिर देखने पाऊँगा परन्तु देख, परमेश्वर ने मुझे तेरा वंश भी दिखाया है ।" 12 तब यूसुफ ने उन्हें अपने घुटनों के बीच से हटाकर और अपने मुँह के बल भूमि पर गिरके दण्डवत् की । 13 तब यूसुफ ने उन दोनों को लेकर अर्थात् एप्रेम को अपने दाहिने हाथ से कि वह इस्राएल के बाएँ हाथ पड़े, और मनश्शे को अपने बाएँ हाथ से कि वह इस्राएल के दाहिने हाथ पड़े, उन्हें उसके पास ले गया । 14 तब इस्राएल ने अपना दाहिना हाथ बढ़ाकर एप्रेम के सिर पर जो छोटा था, और अपना बायाँ हाथ बढ़ाकर मनश्शे के सिर पर रख दिया, उसने जान बूझकर ऐसा किया नहीं तो जेठा मनश्शे ही था । 15 फिर उसने यूसुफ को आशीर्वाद देकर कहा, "परमेश्वर जिसके सम्मुख मेरे बापदादे अब्राहम और इसहाक चले, वही परमेश्वर मेरे जन्म से लेकर आज के दिन तक मेरा चरवाहा बना हैं, 16 और वही दूत मुझे सारी बुराई से छुड़ाता आया है, वही अब इन लड़कों को आशिष दे, और ये मेरे और मेरे बापदादे अब्राहम और इसहाक के कहलाएँ; और पृथ्वी में बहुतायत से बढ़ें ।" 17 जब यूसुफ ने देखा कि मेरे पिता ने अपना दाहिना हाथ प्रेम के सिर पर रखा है, तब यह बात उसको बुरी लगी, इसलिये उसने अपने पिता का हाथ इस विचार से पकड़ लिया कि एप्रेम के सिर पर से उठाकर मनपरी के सिर पर रख दें । 18 और यूसुफ ने अपने पिता से कहा, "हे पिता, ऐसा नहीं, क्योंकि जेठा यही है, अपना दाहिना हाथ इसके सिर पर रख ।" 19 उसके पिता ने कहा, "नहीं, सून, हे मेरे पुत्र, मैं इस बात को भली भाँति जानता हूँ: यद्यपि इस से भी मनुष्यों की एक मण्डली उत्पन्न होगी, और वह भी महान् हो जाएगा, तौभी इसका छोटा भाई इससे अधिक महान् हो जाएगा, और उसके वंश से बहुत सी जातियाँ निकलेगी " 20 फिर उसने उसी दिन यह कहकर उनको आशीर्वाद दिया, “इस्त्राएली लोग तेरा नाम ले लेकर ऐसा आशीर्वाद दिया करेंगे, 'परमेश्वर तुझे प्रेम और मनश्शे के समान बना दे," और उसने मनश्शे से पहले पप्रेम का नाम लिया । 21 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, "देख, मैं तो मरने पर हूँ : परन्तु परमेश्वर तुम लोगों के संग रहेगा, और तुम को तुम्हारे पितरों के देश में फिर पहुॅचा देगा । 22 और मैं तुझ को तेरे भाइयों से अधिक भूमि का एक भाग देता हूँ, जिसको मैं ने एमोरियों के हाथ से अपनी तलवार और धनुष बल ले लिया है । " 

    जय मसीह की । || कविता पोरिया    

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