इसहाक का जन्म, हाजिरा और इश्माएल का निकाला जाना, अब्राहम और अबीमेलेक के बीच सन्धि - YISHU KA SANDESH

इसहाक का जन्म, हाजिरा और इश्माएल का निकाला जाना, अब्राहम और अबीमेलेक के बीच सन्धि

इसहाक का जन्म:-

                                     1 यहोवा ने जैसा कहा था वैसा ही सारा 21 की सुधि ले के उसके साथ अपने वचन के अनुसार किया । 2 सारा अब्राहम से गर्भवती हुई, और उसके बुढ़ापे में उसी नियुक्त समय पर जो परमेश्वर ने उस से ठहराया था, एक पुत्र उत्पन्न हुआ । * 3 अब्राहम ने अपने उस पुत्र का नाम जो सारा से उत्पन्न हुआ था इसहाक * रखा । 4 और जब उसका पुत्र इसहाक आठ दिन का हुआ, तब उसने परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार उसका खतना किया । * 5 जब अब्राहम का पुत्र इसहाक उत्पन्न हुआ तब अब्राहम एक सौ वर्ष का था । 6 और सारा ने कहा, “परमेश्वर ने मुझे प्रफुल्लित किया है; इसलिये सब सुननेवाले भी मेरे साथ प्रफुल्लित होंगे ।” 7 फिर उसने यह भी कहा, "क्या कोई कभी अब्राहम से कह सकता था कि सारा लड़कों को दूध पिलाएगी ? पर देखो, मुझ से उसके बुढ़ापे में एक पुत्र उत्पन्न हुआ ।" 8 वह लड़का बढ़ा और उसका दूध छुड़ाया गया; और इसहाक के दूध छुड़ाने के दिन अब्राहम ने बड़ा भोज किया । 


हाजिरा और इश्माएल का निकाला जाना:-

                 9 तब सारा को मिस्री हाजिरा का पुत्र, जो अब्राहम से उत्पन्न हुआ था, हँसी करता हुआ दिखाई पड़ा । 10 इस कारण उसने अब्राहम से कहा, "इस दासी को पुत्र सहित निकाल दे; क्योंकि इस दासी का पुत्र मेरे पुत्र इसहाक के साथ भागी नहीं होगा।" 11 यह बात अब्राहम को अपने पुत्र के कारण बहुत बुरी लगी । 12 परन्तु परमेश्वर ने अब्राहम से कहा, "उस लड़के और अपनी दासी के कारण तुझे बुरा न लगे, जो बात सारा तुझ से कहे, उसे मान, क्योंकि जो तेरा वंश कहलाएगा वह इसहाक ही से चलेगा । 13 दासी के पुत्र से भी मैं एक जाति उत्पन्न करूंगा, इसलिये कि वह तेरा वंश है ।" 14 इसलिये अब्राहम ने सबेरे तड़के उठकर रोटी और पानी से भरी चमड़े की थैली भी हाजिरा को दी, और उसके कन्धे पर रखी और उसके लड़के को भी उसे देकर उसको विदा किया । वह चली गई, और बेर्शेबा के जंगल में भटकने लगी । 15 जब थैली का जल समाप्त हो गया, तब उसने लड़के को एक झाड़ी के नीचे छोड़ दिया । 16 और आप उस से तीर भर के टप्पे पर दूर जाकर उसके सामने यह सोचकर बैठ गई, "मुझ को लड़के की मृत्यु देखनी न पड़े ।" तब वह उसके सामने बैठी हुई चिल्ला चिल्ला के रोने लगी । 17 परमेश्वर ने उस लड़के की सुनी और उसके दूत ने स्वर्ग से हाजिरा को पुकार के कहा, “हे हाजिरा, तुझे क्या हुआ? मत डर, क्योंकि जहाँ तेरा लड़का है वहाँ से उसकी आवाज़ परमेश्वर को सुन पड़ी है । 18 उठ, अपने लड़के को उठा और अपने हाथ से सम्भाल; क्योंकि में उसके द्वारा एक बड़ी जाति बनाऊँगा ।" 19 तब परमेश्वर ने उसकी आँखें खोल दीं और उसको एक कुआँ दिखाई पड़ा; तब उसने जाकर थैली, को जल से भरकर लड़के को पिलाया । 20 और परमेश्वर उस लड़के के साथ रहा; और जब वह बड़ा हुआ, तब जंगल में रहते रहते धनुर्धारी बन गया । 21 वह पारान नामक जंगल में रहा करता था; और उसकी माता ने उसके लिये मित्र देश से एक स्त्री मँगवाई ।

अब्राहम और अबीमेलेक के बीच सन्धि:-

                22 उन दिनों में ऐसा हुआ कि अबमेलेक अपने सेनापति पीकोल को संग लेकर अब्राहम से कहने लगा, "जो कुछ तू करता है उसमें परमेश्वर तेरे संग रहता है; 23 इसलिये अब मुझ से यहाँ इस विषय में परमेश्वर की शपथ खा कि तू न तो मुझ से छल करेगा और न कभी मेरे वंश से करेगा, परन्तु जैसी करुणा मैं ने तुझ पर की है । वैसी ही तू मुझ पर और इस देश पर भी, जिसमें तू रहता है, करेगा ।" 24 अब्राहम ने कहा, "मैं शपथ खाऊँगा ।" 25 तब अब्राहम ने अबीमेलेक को एक कुएँ के विषय में जो अबीमेलेक के दासों ने बलपूर्वक ले लिया था, उलाहना दिया । 26 तब अबीमेलेक ने कहा, "मैं नहीं जानता कि किस ने यह काम किया; और तू ने भी मुझे नहीं बताया, और न मैं ने आज से पहले इसके न विषय में कुछ सुना ।" 27 तब अब्राहम ने भेड़ बकरी और गाय-बैल अबीमेलेक को दिए और उन दोनों ने आपस में वाचा बाँधी । 28 अब्राहम ने भेड़ की सात बच्ची अलग कर रखीं । 29 तब अबीमेलेक ने अब्राहम से पूछा, "इन सात बच्चियों का, जो तू ने अलग कर रखी हैं, क्या "तू प्रयोजन है ?" 30 उसने कहा, "तू इन सात बच्चियों को इस बात की साक्षी जानकर मेरे हाथ से ले कि मैं ने यह कुआँ खोदा है ।" 31 उन दोनों ने जो उस स्थान में आपस में शपथ खाई, इसी कारण उसका नाम बेर्शेबा पड़ा । 32 जब उन्होंने बेर्शेबा में परस्पर वाचा बाँधी, तब अबीमेलेक और उसका सेनापति पीकोल उठकर अपलितियों के देश में लौट गए । 33 फिर अब्राहम ने बेर्शेबा मै झाऊ का एक वृक्ष लगाया और वहाँ यहाँवा से जो सनातन ईश्वर है प्रार्थना की । 34 अब्राहम पलिश्तियों के देश में बहुत दिनों तक परदेशी होकर रहा ।

     जय मसीह की । || कविता पोरिया     
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