यूसुफ का अपने भाइयों को आश्वासन देना, यूसुफ की मृत्यु (Joseph's assurance to his brothers, Joseph's death) - YISHU KA SANDESH

यूसुफ का अपने भाइयों को आश्वासन देना, यूसुफ की मृत्यु (Joseph's assurance to his brothers, Joseph's death)

यूसुफ का अपने भाइयों को आश्वासन देना:-

                             14 अपने पिता को मिट्टी देकर यूसुफ अपने भाइयों और उन सब समेत, जो उसके पिता को मिट्टी देने के लिये उसके संग गए थे, मिस्र लौट आया । 15 जब यूसुफ के भाइयों ने देखा कि हमारा पिता मर गया है, तब कहने लगे, "कदाचित् यूसुफ अब हमारे पीछे पड़े, और जितनी बुराई हम ने उस से की थी सब का पूरा पलटा हम से ले ।” 16 इसलिये उन्होंने यूसुफ के पास यह कहला भेजा, 'तेरे पिता ने मरने से पहले हमें यह आज्ञा दी थी, 17 तुम लोग यूसुफ से इस प्रकार कहना, कि हम विनती करते हैं कि तू अपने भाइयों के अपराध और पाप को क्षमा कर; हम ने तुझ से बुराई की थी, पर अब अपने पिता के परमेश्वर के दासों का अपराध क्षमा कर ।” उनकी ये बातें सुनकर यूसुफ रो पड़ा । 18 और उसके भाई आप भी जाकर उसके सामने गिर पड़े, और कहा, "देख, हम तेरे दास हैं । 19 यूसुफ ने उनसे कहा, "मत डरो, क्या मैं परमेश्वर की जगह पर हूँ ? 20 यद्यपि तुम लोगों ने मेरे लिये बुराई का विचार किया था; परन्तु परमेश्वर ने उसी बात में भलाई का विचार किया, जिससे वह ऐसा करे, जैसा आज के दिन प्रगट है, कि बहुत से लोगों के प्राण बचे हैं । 21 इसलिये अब मत डरो; मैं तुम्हारा और तुम्हारे बाल-बच्चों का पालन-पोषण करता रहूँगा ।" इस प्रकार उसने उनको समझा-बुझाकर शान्ति दी ।

 


यूसुफ की मृत्यु:-

                           22 यूसुफ अपने पिता के घराने समेत मिस्र में रहता रहा, और यूसुफ एक सौ दस वर्ष जीवित रहा । 23 और यूसुफ एप्रैम के परपोतों तक को देखने पाया; और मनश्शे के पोते, जो माकीर के पुत्र थे, वे उत्पन्न हुए और यूसुफ ने उन्हें गोद में लिया । 24 यूसुफ ने अपने भाइयों से कहा, “मैं तो मरने पर हूँ; परन्तु परमेश्वर निश्चय तुम्हारी सुधि लेगा, और तुम्हें इस देश से निकालकर उस देश में पहुँचा देगा, जिसके देने की उसने अब्राहम, इसहाक, और याक़ूब से शपथ खाई थी ।" 25 फिर यूसुफ ने इस्राएलियों से यह कहकर कि परमेश्वर निश्चय तुम्हारी सुधि लेगा, उनको इस विषय की शपथ खिलाई, "हम तेरी हड्डियों को यहाँ से उस देश में ले जाएँगे । ' 26 इस प्रकार यूसुफ एक सौ दस वर्ष का होकर मर गया; और उसके शव में सुगन्धद्रव्य भरे गए, और वह शव मिस्र में एक सन्दूक में रखा गया । 

    जय मसीह की । || कविता पोरिया    

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