फिरौन के स्वप्नों का अर्थ बताना (Interpretation of pharaoh's dreams) - YISHU KA SANDESH

फिरौन के स्वप्नों का अर्थ बताना (Interpretation of pharaoh's dreams)

फिरौन के स्वप्नों का अर्थ बताना:-

                        1 पूरे दो वर्ष बीतने पर फ़िरौन ने यह स्वप्न देखा कि वह नील नदी के किनारे खड़ा है । 2 और उस नदी में से सात सुन्दर और मोटी मोटी गायें निकलकर कछार की घास चरने लगीं । 3 और, क्या देखा कि उनके पीछे और सात गायें, जो कुरूप और दुर्बल हैं, नदी से निकलीं, और दूसरी गायों के निकट नदी के तट पर जा खड़ी हुईं । 4 तब ये कुरूप और दुर्बल गायें उन सात सुन्दर और मोटी मोटी गायों को खा गईं। तब फिरौन जाग उठा । 5 और वह फिर सो गया और दूसरा स्वप्न देखा कि एक डंठल में से सात मोटी और अच्छी अच्छी बालें निकलीं । 6 और, क्या देखा कि उनके पीछे सात बालें पतली और पुरवाई से मुरझाई हुई निकलीं । 


7 और इन पतली बालों ने उन सातों मोटी और अन्न से भरी हुई बालों को निगल लिया । तब फ़िरौन जागा, और उसे मालूम हुआ कि यह स्वप्न ही था। 8 भोर को फ़िरौन का मन व्याकुल हुआ और उसने मिस्र के सब ज्योतिषियों और पण्डितों को बुलवा भेजा;  और उनको अपने स्वप्न बताए; पर उनमें से कोई भी उनका फल फिरौन को न बता सका । 9 तब पिलानेहारों का प्रधान फ़िरौन से बोल उठा, 'मेरे अपराध आज मुझे स्मरण आए: 10 जब फिरौन अपने दासों से क्रोधित हुआ था, और मुझे और पकानेहारों के प्रधान को क़ैद कराके अंगरक्षकों के प्रधान के घर के बन्दीगृह में डाल दिया था; 11 तब हम दोनों ने एक ही रात में अपने अपने होनहार के अनुसार स्वप्न देखा । 12 वहाँ हमारे साथ एक इब्री जवान था, जो अंगरक्षकों के प्रधान का दास था; अतः हम ने उसको बताया और उसने हमारे स्वप्नों का फल हम से कहा, हम में से एक एक के स्वप्न का फल उसने बता दिया । 13 और जैसा जैसा फल उसने हम से कहा था, वैसा ही हुआ भी, अर्थात् मुझ को तो मेरा पद फिर मिला, पर वह फाँसी पर लटकाया गया ।" 14 तब फिरौन ने यूसुफ को बुलवा भेजा; और वह झटपट बन्दीगृह से बाहर निकाला गया और बाल बनवाकर और वस्त्र बदल कर फिरौन के सामने आया । 15 फिरौन ने यूसुफ से कहा, ने ‘“मैं ने एक स्वप्न देखा है, और उसके फल का बतानेवाला कोई भी नहीं, और मैं ने तेरे विषय में सुना है कि तू स्वप्न सुनते ही उसका फल बता सकता है ।" 16 यूसुफ ने फ़िरौन से कहा, “मैं तो कुछ नहीं जानता: परमेश्वर ही फिरौन के लिये शुभ वचन देगा ।" 17 फिर फ़िरौन यूसुफ से कहने लगा, "मैं ने अपने स्वप्न में देखा कि मैं नील नदी के किनारे खड़ा हूँ। 18 फिर क्या देखा, कि नदी में से सात मोटी और सुन्दर सुन्दर गायें निकलकर कछार की घास चरने लगीं । 19 फिर क्या देखा, कि उनके पीछे सात और गायें निकलीं, जो दुबली और बहुत कुरूप और दुर्बल हैं; मैं ने सारे मिस्र देश में ऐसी कुडौल गायें कभी नहीं देखीं । 20 इन दुर्बल और कुडौल गायों ने उन पहली सातों मोटी मोटी गायों को खा लिया; 21 और जब वे उनको खा गईं तब यह मालूम नहीं होता था कि वे उनको खा गई हैं, क्योंकि वे पहले के समान जैसी की तैसी कुडौल रहीं । तब मैं जाग उठा । 22 फिर मैं ने दूसरा स्वप्न देखा, कि एक ही डंठल में सात अच्छी अच्छी और अन्न से भरी हुई बालें निकलीं । 23 फिर क्या देखता हूँ, कि उनके पीछे और सात बालें छूछी छूछी और पतली और पुरवाई से मुरझाई हुई निकलीं, 24 और इन पतली बालों ने उन सात अच्छी अच्छी बालों को निगल लिया। इसे मैं ने ज्योतिषियों को बताया, पर इसका समझानेहारा कोई नहीं मिला ।" 25 तब यूसुफ ने फ़िरौन से कहा, "फ़िरौन का स्वप्न एक ही है, परमेश्वर जो काम करना चाहता है, उसको उसने फ़िरौन पर प्रगट किया है । 26 वे सात अच्छी अच्छी गायें सात वर्ष हैं; और वे सात अच्छी अच्छी बालें भी सात वर्ष हैं; स्वप्न एक ही है । 27 फिर उनके पीछे जो दुर्बल और कुडौल गायें निकलीं, और जो सात छूछी और पुरवाई से मुरझाई हुई बालें निकालीं, वे अकाल के सात वर्ष होंगे । 28 यह वही बात है जो मैं फ़िरौन से कह चुका हूँ कि परमेश्वर जो काम करना चाहता है, उसे उसने फिरौन को दिखाया है । 29 सुन, सारे मिस्र देश में सात वर्ष तो बहुतायत की उपज के होंगे। 30 उनके पश्चात् सात वर्ष अकाल के आयेंगे, और सारे मित्र देश में लोग इस सारी उपज को भूल जायेंगे; और अकाल से देश का नाश होगा । 31 और सुकाल (बहुतायत की उपज ) देश में फिर स्मरण न रहेगा, क्योंकि अकाल अत्यन्त भयंकर होगा । 32 और फ़िरौन ने जो यह स्वप्न दो बार देखा है इसका भेद यही है कि यह बात परमेश्वर की ओर से नियुक्त हो चुकी है, और परमेश्वर इसे शीघ्र ही पूरा करेगा । 33 इसलिये अब फ़िरौन किसी समझदार और बुद्धिमान् पुरुष को ढूँढ़ कर के उसे मिस्र देश पर प्रधान मंत्री ठहराए । 34 फ़िरौन यह करे कि देश पर अधिकारियों को नियुक्त करे, और जब तक सुकाल के सात वर्ष रहें तब तक वह मिस्र देश की उपज का पंचमांश लिया करे । 35 और वे इन अच्छे वर्षों में सब प्रकार की भोजनवस्तु इकट्ठा करें, और नगर नगर में भण्डार घर भोजन के लिये, फिरौन के वश में करके उसकी रक्षा करें । 36 वह भोजनवस्तु अकाल के उन सात वर्षों के लिये, जो मिस्र देश में आएँगे, देश के भोजन के लिए रखी रहे, जिससे देश का उस अकाल से सत्यानाश न हो जाए ।

    जय मसीह की । || कविता पोरिया    

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