इसहाक के विवाह का वर्णन (Description of Isaac's Marriage) - YISHU KA SANDESH

इसहाक के विवाह का वर्णन (Description of Isaac's Marriage)

इसहाक के विवाह का वर्णन:-

                            1 अब्राहम अब वृद्ध हो गया था और उसकी आयु बहुत थी और यहोवा ने सब बातों में उसको आशीष दी थी । 2 अब्राहम ने अपने उस दास से, जो उसके घर में पुरनिया और उसकी सारी सम्पत्ति पर अधिकारी था, कहा, “अपना हाथ मेरी जाँघ के नीचे रख; 3 और मुझ से आकाश और पृथ्वी के परमेश्वर यहोवा से की इस विषय में शपथ खा कि तू मेरे तू पुत्र के लिये कनानियों की लड़कियों में से, जिनके बीच मैं रहता हूँ, किसी को न लाएगा । 4 परन्तु तू मेरे देश में मेरे ही कुटुम्बियों के पास जाकर मेरे पुत्र इसहाक के लिये एक पत्नी ले आएगा । 5 दास ने उससे कहा, "कदाचित् वह स्त्री इस देश में मेरे साथ आना न चाहे तो क्या मुझे तेरे पुत्र को उस देश में जहाँ से तू आया है ले जाना पड़ेगा ? 6 अब्राहम ने उससे कहा, "चौकस रह, मेरे पुत्र को वहाँ कभी न ले जाना । 7 स्वर्ग का परमेश्वर यहोवा, जिसने मुझे मेरे पिता के घर से और मेरी जन्म भूमि से ले आकर मुझ से शपथ खाई और कहा कि मैं यह देश तेरे वंश को दूँगा, वही अपना दूत तेरे आगे आगे भेजेगा कि तू मेरे पुत्र के लिये वहाँ से एक स्त्री ले आए । 8 परन्तु यदि वह स्त्री तेरे साथ आना न चाहे तब तो तू मेरी तू इस शपथ से छूट जाएगा; पर मेरे पुत्र को वहाँ न ले जाना ।" 9 तब उस दास ने अपने स्वामी अब्राहम की जाँघ के नीचे अपना हाथ रखकर उससे इस विषय की शपथ खाई । 10 तब वह दास अपने स्वामी के ऊँटों में से दस ऊँट छाँटकर, उसके सब उत्तम उत्तम पदार्थों में से कुछ कुछ लेकर चला और मेसोपोटामिया में नाहोर के नगर के पास पहुँचा । 11 उसने ऊँटों को नगर के बाहर एक कुएँ के पास बैठाया । वह संध्या का समय था, जिस समय स्त्रियाँ जल भरने के लिये निकलती हैं । 12 वह कहने लगा, “हे मेरे स्वामी अब्राहम के परमेश्वर यहोवा, आज मेरे कार्य को सिद्ध कर, और मेरे स्वामी अब्राहम पर करुणा कर ।


13 देख, मैं जल के इस सोते के पास खड़ा हूँ; और नगरवासियों की बेटियाँ जल भरने के लिये निकली आती हैं : 14 इसलिये ऐसा होने दे कि जिस कन्या से मैं कहूँ, 'अपना घड़ा मेरी ओर झुका कि मैं पीऊँ,' और वह कहे, 'ले, पी ले, पीछे मैं तेरे ऊँटों को भी पिलाऊँगी, ' : यह वही हो जिसे तू ने अपने दास इसहाक के लिये ठहराया हो; इसी रीति मैं आन लूंगा कि तू ने मेरे स्वामी पर करुणा की 15 और ऐसा हुआ कि जब वह वह ही रहा था कि रिका, जो अब्राहम के भाई नाहोर के जन्माये मिल्का के पुत्र बतुएल की बेटी थी, वह के कन्धे पर घड़ा लिये हुए आई । 16 वह अति सुन्दर और कुमारी थी, और किसी पुरुष का मुँह न देखा था । वह कुएं में सोते के पास उत्तर गई, और अपना घड़ा भर के फिर ऊपर आई । 17 तब वह दास उससे भेंट करने को दौड़ा, और कहा, "अपने घड़े में से थोड़ा पानी मुझे पिला दे।" 18 उसने कहा, "हे मेरे प्रभु, ले, पौ ले." और उसने जल्दी से घड़ा उतारकर हाथ में लिये लिये उसको पिला दिया । 19 जब वह उसको पिला चुकी, तब कहा, "मैं तेरे ऊँटों के लिये भी तब तक पानी भर भर लाऊँगी, जब तक वे पी न चुकें ।" 20 तब वह तुरन्त अपने घड़े का जल हौदे में उण्डेलकर फिर कुँए पर भरने को दौड़ गई, और उसके सब ऊँटों के लिये पानी भर दिया । 21 वह पुरुष उसकी ओर चुपचाप अचम्भे के साथ ताकता हुआ यह सोचता था कि यहोवा ने मेरी यात्रा को सफल किया है कि नहीं । 22 जब ऊँट पी चुके, तब उस पुरुष ने आधा तोला सोने का एक नथ निकालकर उसको दिया, और दस तोले सोने के कंगन उसके हाथों में पहिना दिए; 23 और पूछा, "तू किसकी बेटी हैं, यह मुझ को बता। क्या तेरे पिता के घर में हमारे टिकने के लिये स्थान है ?" 24 उसने उत्तर दिया, "मैं तो नाहोर के जन्माए मिल्का के पुत्र बतूएल की बेटी हूँ ।" 25 फिर उसने उससे कहा, "हमारे यहाँ पुआल और चारा बहुत हैं, और टिकने के लिये स्थान भी है।" 26 तब उस पुरुष ने सिर झुकाकर यहोवा को दण्डवत् करके कहा, 27 "धन्य है मेरे स्वामी अब्राहम का परमेश्वर यहोवा, जिसने अपनी करुणा और सच्चाई को मेरे स्वामी पर से हटा नहीं लिया; यहोवा ने मुझ को ठीक मार्ग पर चलाकर मेरे स्वामी के भाई बन्धुओं के घर पर पहुँचा दिया है ।" 28 तब उस कन्या ने दौड़कर अपनी माता के घर में यह सारा वृत्तान्त कह सुनाया । 29 तब लावान जो रिबका का भाई था, बाहर कुएं के निकट उस पुरुष के पास दौड़ा गया 30 और ऐसा हुआ कि जब उसने वह नथ और अपनी बहिन रिबका के हाथों में वे कंगन भी देखे, और उसको यह बात भी सुनी कि उस पुरुष ने मुझ से ऐसी बातें कहीं; तब वह उस पुरुष के पास गया: और क्या देखा कि वह सोते के निकट ऊँटों के पास खड़ा है । 31 उसने कहा, "हे यहोवा की ओर से धन्य पुरुष, भीतर आ तू क्यों बाहर खड़ा है? मैंने घर को, और ऊंटों के लिये भी स्थान तैयार किया है ।" 32 इस पर वह पुरुष घर में गया; और लाबान ने ऊँदों की काठियाँ खोलकर उन्हें पुआल और चारा दिया, और उसके और उसके साथियों के पाँव धोने को जल दिया । 33 तब अब्राहम के दास के आगे जलपान के लिये कुछ रखा गया, पर उसने कहा, "मैं जब तक अपना प्रयोजन न कह दूँ, तब तक कुछ न खाऊँगा ।" लावान ने कहा, "कह दे।" 34 तब उसने कहा, "मैं तो अब्राहम का दास हूँ । 35 यहोवा ने मेरे स्वामी को बड़ी आशीष दी है, इसलिये वह महान् पुरुष हो गया है और उसने उसको भेड़-बकरी, गाय-बैल, सोना रूपा, दास-दासियाँ, ऊँट और गदहे दिए हैं । 36 और मेरे स्वामी की पत्नी सारा के बुढ़ापे में उससे एक पुत्र उत्पन्न हुआ है; और उस पुत्र को अब्राहम ने अपना सब कुछ दे दिया है । 37 मेरे स्वामी ने मुझे यह शपथ खिलाई है, 'मैं उसके पुत्र के के लिये कनानियों की लड़कियों में से, जिनके देश में वह रहता है, कोई स्त्री नहीं लाऊँगा । 38 में उसके पिता के घर और कुल के लोगों के पास जाकर उसके पुत्र के लिये एक स्त्री ले आऊँगा ।" 39 तब मैं ने अपने स्वामी से कहा, 'कदाचित् वह स्त्री मेरे पीछे न आए । 40 तब उसने मुझ से कहा, 'यहोवा, जिसके सामने मैं चलता आया हूँ, वह तेरे संग अपने दूत को भेजकर तेरी यात्रा को सफल करेगा; और तू मेरे कुल, और मेरे पिता के घराने में से मेरे पुत्र के लिए एक स्त्री ला सकेगा । 41 तू तब ही मेरी इस शपथ से छूटेगा, जब तू मेरे कुल के लोगों के पास पहुँचेगा; और यदि वे तुझे कोई स्त्री न दें, तो तू मेरी शपथ से वे छूटेगा' 42 इसलिये मैं आज उस कुएँ के निकट आकर कहने लगा, 'हे मेरे स्वामी अब्राहम के परमेश्वर यहोवा, यदि तू मेरी इस यात्रा को सफल करता हो; 43 तो देख, मैं जल के इस कुएँ के निकट खड़ा हूँ; और ऐसा हो कि जो कुमारी जल भरने के लिये आए, और मैं उससे कहूँ, "अपने घड़े में से मुझे थोड़ा पानी पिला, 44 और वह मुझ से कहे, “पी ले, और मैं तेरे ऊँटों के पीने के लिये भी पानी भर दूँगी, "वह वही स्त्री हो जिसको तू ने मेरे स्वामी के पुत्र के लिये ठहराया है । 45 मैं मन ही मन यह कह ही रहा था कि देखो रिवका कन्धे पर घड़ा लिये हुए निकल आई फिर वह सोते के पास उतरके भरने लगी । मैं ने उससे कहा, 'मुझे पिला दे ।" 46 और उसने जल्दी से अपने घड़े को कन्धे पर से उतारके कहा, 'ले, पी ले, पीछे मैं तेरे ऊँटों को भी पिलाऊँगी,' इस प्रकार मैं ने पी लिया, और उसने ऊँटों को भी पिला दिया । 47 तब मैं ने उससे पूछा, 'तू किसकी बेटी है ?" उसने कहा, 'मैं तो नाहोर के जन्माए मिल्का के पुत्र बतूएल की बेटी हूँ, तब मैं ने उसकी नाक में वह नथ और उसके हाथों में वे कंगन पहिना दिए । 48 फिर मैं ने सिर झुकाकर यहोवा को दण्डवत् किया, और अपने स्वामी अब्राहम के परमेश्वर यहोवा को धन्य कहा, क्योंकि उसने मुझे ठीक मार्ग से पहुँचाया कि मैं अपने स्वामी के पुत्र के लिये उसके कुटुम्बी की पुत्री को ले जाऊँ । 49 इसलिये अब, यदि तुम मेरे स्वामी के साथ कृपा और सच्चाई का व्यवहार करना चाहते हो, तो मुझसे कहो; और यदि नहीं चाहते हो, तौभी मुझसे कह दो, ताकि मैं दाहिनी ओर या बाई ओर फिर जाऊँ ।” 50 तब लावान और बतूएल ने उत्तर दिया, "यह बात यहोवा की ओर से हुई है; इसलिये हम लोग तुझ से न तो भला कह सकते हैं न बुरा 51 देख, रिबका तेरे सामने हैं, उसको ले जा, और वह यहोवा के वचन के अनुसार तेरे स्वामी के पुत्र की पत्नी हो जाए। 52 उनकी यह बात सुनकर, अब्राहम के दास ने भूमि पर गिरके यहोवा को दण्डवत् किया 53 फिर उस दास ने सोने और रूपे के गहने, और वस्त्र निकालकर रिबका को दिए; और उसके भाई और माता को भी उसने अनमोल अनमोल वस्तुएँ दीं । 54 तब उसने अपने संगी जनों समेत भोजन किया, और रात वहीं बिताई। उसने तड़के उठकर कहा, "मुझ को अपने स्वामी के पास जाने के लिये विदा करो ।" 55 रिबका के भाई और माता ने कहा, "कन्या को हमारे पास कुछ दिन, अर्थात् कम से कम दस दिन और रहने दे; फिर उसके पश्चात् वह चली जाएगी ।" 56 उसने उनसे कहा, "यहोवा ने जो मेरी यात्रा को सफल किया है, इसलिये तुम मुझे मत रोको, अब मुझे विदा कर दो कि मैं अपने स्वामी के पास जाऊँ ।" 57 उन्होंने कहा, "हम कन्या को बुलाकर पूछते हैं, और देखेंगे कि वह क्या कहती है ।" 58 और उन्होंने रिबका को बुलाकर उससे पूछा, "क्या तू इस मनुष्य के संग जाएगी ? उसने कहा, "हाँ, मैं जाऊँगी। 59 तब उन्होंने अपनी बहिन रिबका, और उसकी धाय, और अब्राहम के दास और उसके साथी, सभों को विदा किया । 60 और उन्होंने रिबका को आशीर्वाद दे के कहा, "हे हमारी बहिन, तू हजारों लाखों की आदिमाता ह हो, और तेरा वंश अपने बैरियों के नगरों का अधिकारी हो ।" 61 तब रिबका अपनी सहेलियों समेत चली, और ऊँट पर चढ़ के उस पुरुष के पीछे हो ली । इस प्रकार वह दास रिवका को साथ लेकर चल दिया । 62 इसहाक जो दक्खिन देश में रहता था, लहरोई नामक कुएँ से होकर चला आता था । 63 साँझ के समय वह मैदान में ध्यान करने के लिये निकला था और उसने आँखें उठाकर क्या देखा कि ऊँट चले आ रहे हैं । 64 रिबका ने भी आँखें उठाकर इसहाक को देखा, और  देखते ही ऊँट पर से उतर पड़ी । 65 तब उसने दास से पूछा, "जो पुरुष मैदान पर हम से मिलने को चला आता है, सो कौन है ?” दास ने कहा, "वह तो मेरा स्वामी है ।" तब रिबका ने घूँघट लेकर अपने मुँह को ढाँप लिया । 66 दास ने इसहाक को अपना सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनाया । 67 तब इसहाक रिबका को अपनी माता सारा के तम्बू में ले आया, और उसको ब्याह कर उससे प्रेम किया । इस प्रकार इसहाक को माता की मृत्यु के पश्चात् शान्ति प्राप्त हुई ।

    जय मसीह की । || कवीता पोरिया     

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