यूसुफ का प्रधान मंत्री बनाया जाना (Yusuf to be Prime Minister)
यूसुफ का प्रधान मंत्री बनाया जाना:-
37 यह बात फ़िरौन और उसके सारे कर्म चारियों को अच्छी लगी । 38 इसलिये फिरौन ने अपने कर्मचारियों से कहा, "क्या हम को ऐसा पुरुष, जैसा यह है जिसमें परमेश्वर का आत्मा रहता है, मिल सकता है ?" 39 फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, "परमेश्वर ने जो तुझे इतना ज्ञान दिया है कि तेरे तुल्य कोई समझदार और बुद्धिमान नहीं 40 इस कारण तू मेरे घर का अधिकारी होगा, और तेरी आज्ञा के अनुसार मेरी सारी प्रजा चलेगी, केवल राजगद्दी के विषय मैं तुझ से बड़ा से ठहरूँगा ।" 41 फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, "सुन, मैं तुझ को मिस्र के सारे देश के ऊपर मैं अधिकारी ठहरा देता हूँ ।" 42 तब फ़िरौन ने अपने हाथ से अँगूठी निकालके यूसुफ के हाथ में पहिना दी और उसको बढ़िया मलमल के वस्त्र पहिनवा दिया, और उसके गले में सोने की जंजीर डाल दी, 43 और उसको अपने दूसरे रथ पर चढ़वाया, और लोग उसके आगे आगे यह प्रचार करते चले कि घुटने टेककर दण्डवत् करो, और उसने उसको मिस्र के सारे देश के ऊपर प्रधान मंत्री ठहराया । 44 फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, "फिरौन तो मैं हूँ, पर सारे मिस्र देश में कोई भी तेरी आज्ञा के बिना हाथ पाँव न हिलाएगा ।'
45 तब फ़िरौन ने यूसुफ का नाम सापनत्पानेह रखा; और ओन नगर के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से उसका विवाह करा दिया । और यूसुफ सारे मिस्र देश में दौरा करने लगा । 46 जब यूसुफ मिस्र के राजा फिरौन के सम्मुख खड़ा हुआ, तब वह तीस वर्ष का था । वह फ़िरौन के सम्मुख से निकलकर सारे मिस्र देश में दौरा करने लगा । 47 सुकाल के सातों वर्षों में भूमि बहुतायत से अन्न उपजाती रही, 48 और यूसुफ उन सातों वर्षों में सब प्रकार की भोजनवस्तुएँ, जो मिस्र देश में होती थीं, जमा करके नगरों में रखता गया; और हर एक नगर के चारों ओर के खेतों की भोजनवस्तुओं को वह उसी नगर में इकट्ठा करता गया । 49 इस प्रकार यूसुफ ने अन्न को समुद्र की बालू के समान अत्यन्त बहुतायत से राशि राशि गिनके रखा, यहाँ तक कि उसने उनका गिनना छोड़ दिया क्योंकि वे असंख्य हो गई । 50 अकाल के प्रथम वर्ष के आने से पहले यूसुफ के दो पुत्र, ओन के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से जन्मे । 51 यूसुफ ने अपने जेठे का नाम यह कहके मनश्शे रखा, कि 'परमेश्वर ने मुझ से मेरा सारा क्लेश, और मेरे पिता का सारा घराना भुला दिया है।" 52 दूसरे का नाम उसने यह कहकर एप्रैम* रखा, कि 'मुझे दुःख भोगने के देश में परमेश्वर ने फलवन्त किया है ।' 53 मिस्र देश के सुकाल के सात वर्ष समाप्त के हो गए 54 और यूसुफ के कहने के अनुसार सात वर्षों के लिये अकाल आरम्भ हो गया । सब देशों में अकाल पड़ने लगा, परन्तु सारे मिस्र देश में अन्न था । 55 जब मिस्र का सारा देश भूखों मरने लगा, तब प्रजा फिरौन से चिल्ला चिल्लाकर रोटी माँगने लगी, और वह सब मिस्त्रियों से कहा करता था, "यूसुफ के पास जाओ; और जो कुछ वह तुम से कहे, वही करो । " 56 इसलिये जब अकाल सारी पृथ्वी पर फैल गया, और मिस्र देश में अकाल का रूप भयंकर हो गया, तब यूसुफ सब भण्डारों को खोल खोलके मिस्त्रियों के हाथ अन्न बेचने लगा । 57 इसलिये सारी पृथ्वी के लोग मिस्र में अन्न मोल लेने के लिये यूसुफ के पास आने लगे, क्योंकि सारी पृथ्वी पर भयंकर अकाल था ।
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अब्राहम के परीक्षा में पड़ने का वर्णन, नाहोर के वंशज
सारा की मृत्यु और अन्तक्रिया का वर्णन
इसहाक का गरार में निवास, इसहाक और अबीमेलेक के बीच सन्धि
याकूब का मल्लयुद्ध, याकूब और एसाव का मिलन
बेतेल में याकूब को आशीष मिलना, राहेल की मृत्यु, याकूब के पुत्र, इसहाक की मृत्यु
बन्दियों के स्वप्नों का अर्थ बताना


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