याकूब और लाबान के बीच विवाद, याकूब और लाबान के बीच सन्धि (Dispute between Jacob and Laban Treaty between Jacob and Laban)
याकूब और लाबान के बीच विवाद:-
25 जब राहेल से यूसुफ उत्पन्न हुआ, तब याकूब ने लाबान से कहा, "मुझे विदा कर कि ने मैं अपने देश और स्थान को जाऊँ । 26 मेरी स्त्रियाँ और मेरे बच्चे, जिनके लिये मैं ने तेरी सेवा की है, उन्हें मुझे दे कि मैं चला जाऊँ, तू तो जानता है कि मैं ने तेरी कैसी सेवा की है ।" 27 लाखान ने उससे कहा, "यदि तेरी दृष्टि में मैं ने अनुग्रह पाया है, तो यहीं रह जा; क्योंकि मैं ने अनुभव से जान लिया है कि यहोवा ने तेरे कारण से मुझे आशीष दी है ।" 28 फिर उसने कहा, "तू ठीक बता कि मैं तुझ को क्या हूँ, और मैं उसे दूंगा ।' 29 उसने उससे कहा, ''तू जानता है कि मैं ने तेरी कैसी सेवा की, और तेरे पशु मेरे पास किस प्रकार से रहे । 30 मेरे आने से पहले वे 3 कितने थे, और अब कितने हो गए हैं; और यहोवा ने मेरे आने पर तुझे आशीष दी है । पर मैं अपने घर का काम कब करने पाऊँगा ?" 31 उसने फिर कहा, 'मैं तुझे क्या दूँ ?" याकूब ने कहा, "तू मुझे कुछ न दे; यदि तू मेरे लिये एक काम करे, तो मैं फिर तेरी भेड़-बकरियों को चराऊँगा, और उनकी रक्षा करूँगा । 32 मैं आज तेरी सब भेड़-बकरियों के बीच होकर निकलूँगा, और जो भेड़ या बकरी चित्तीवाली और चितकबरी हो, और जो भेड़ काली हो, और जो बकरी चितकबरी और चित्तीवाली हो, उन्हें मैं अलग कर रखूँगा; और मेरी मजदूरी में वे ही ठहरेंगी । 33 और जब आगे को मेरी मज़दूरी की चर्चा तेरे सामने चले, तब धर्म की यही साक्षी होगी, अर्थात् बकरियों में से जो कोई न चित्तीवाली न चितकबरी हो, और भेड़ों में से जो कोई काली न हो, यदि मेरे पास निकलें तो चोरी की ठहरेंगी।" 34 तब लाबान ने कहा, "तेरे कहने के अनुसार हो ।" 35 अतः उसने उसी दिन सब धारीवाले और चितकबरे बकरों, और सब चित्तीवाली और चितकबरी बकरियों को, अर्थात् जिनमें कुछ उजलापन था, उनको और सब काली भेड़ों को दिन को तो घाम और रात को पाला मुझे खा गया और नींद मेरी आँखों से भाग जाती थी । 41 बीस वर्ष तक मैं तेरे घर में रहा; चौदह वर्ष तो मैं ने तेरी दोनों बेटियों के लिये, और छ: वर्ष तेरी भेड़-बकरियों के लिये सेवा की, और तू ने तू मेरी मज़दूरी को दस बार बदल डाला । 42 मेरे पिता का परमेश्वर, अर्थात् अब्राहम का परमेश्वर, जिसका भय इसहाक भी मानता है, यदि मेरी ओर न होता तो निश्चय तू अब मुझे छूछे हाथ जाने देता । मेरे दुःख और मेरे हाथों के परिश्रम को देखकर परमेश्वर ने बीती हुई रात में तुझे डाँटा ।"
![]() |
| याकूब और लाबान के बीच विवाद |
याकूब और लाबान के बीच सन्धि:-
43 लाबान ने याकूब से कहा, "ये बेटियाँ तो मेरी ही हैं, और ये बच्चे भी मेरे ही हैं, और ये भेड़-बकरियाँ भी मेरी ही हैं, और जो कुछ तुझे देख पड़ता है वह सब मेरा ही है । परन्तु अब मैं अपनी इन बेटियों, और इनकी सन्तान से क्या कर सकता हूँ? 44 अब आ, मैं और तू दोनों आपस में वाचा बाँधे, और वह मेरे और तेरे बीच साक्षी ठहरे ।" 45 तब याकूब ने एक पत्थर लेकर उसका खम्भा खड़ा किया । 46 तब याकूब ने अपने भाई-बन्धुओं से कहा, "पत्थर इकट्ठा करो, "यह सुनकर उन्होंने पत्थर इकट्ठा करके एक ढेर लगाया, और वहीं ढेर के पास उन्होंने भोजन किया । 47 उस ढेर का नाम लाबान ने तो यज्रसहादुथा, पर याकूब ने गिलियाद रखा । 48 लाबान ने कहा, "यह ढेर आज से मेरे और तेरे बीच साक्षी रहेगा ।" इस कारण उसका नाम गिलियाद रखा गया, 49 और मिजपा भी; क्योंकि उस ने कहा, “जब हम एक दूसरे से दूर रहें तब यहोवा मेरी और तेरी देखभाल करता रहे । 50 यदि तू मेरी बेटियों को दुःख दे, या उनके सिवाय और स्त्रियाँ ब्याह ले, तो हमारे साथ कोई मनुष्य तो न रहेगा; पर देख, मेरे तेरे बीच में परमेश्वर साक्षी रहेगा ।" 51 फिर लाबान ने याकूब से ने कहा, "इस ढेर को देख और इस खम्भे को भी देख, जिनको मैं ने अपने और तेरे बीच में खड़ा किया है। 52 यह ढेर और यह खम्भा दोनों इस बात के साक्षी रहें कि हानि करने के विचार से न तो मैं इस ढेर को पार करके तेरे पास जाऊँगा, न तू इस ढेर और इस खम्भे को पार कर के मेरे पास आएगा 53 अब्राहम और नाहोर और उनके पिता; तीनों का जो परमेश्वर है, वही हम दोनों के बीच न्याय करे ।" तब याकूब ने उसकी शपथ खाई जिसका भय उसका पिता इसहाक मानता था; 54 और याकूब ने उस पहाड़ पर मेलबलि चढ़ाया, और अपने भाई बन्धुओं को भोजन करने के लिये बुलाया, तब उन्होंने भोजन करके पहाड़ पर रात बिताई । 55 भोर को लाबान उठा, और अपने बेटे-बेटियों को चूमकर और आशीर्वाद देकर चल दिया, और अपने स्थान को लौट गया ।
एसाव से मिलने की तैयारी:-
1 याकूब ने भी अपना मार्ग लिया और परमेश्वर के दूत उसे आ मिले । 2 उनको देखते ही याकूब ने कहा, "यह तो परमेश्वर का दल है ।" इसलिये उस ने उस स्थान का नाम महनैम रखा । 3 तब याकूब ने सेईर देश में, अर्थात् एदोम देश में, अपने भाई एसाव के पास अपने आगे दूत भेज दिए, 4 और उसने उन्हें यह आज्ञा दी, "मेरे प्रभु एसाव से यों कहना: तेरा दास याकूब तुझ से यों कहता है कि मैं लाबान के यहाँ परदेशी होकर अब तक रहा 5 और मेरे पास गाय-बैल, गदहे, भेड़-बकरियाँ, और दास दासियाँ हैं और मैं ने अपने प्रभु के पास इसलिये संदेश भेजा है कि तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो ।" 6 वे दूत याकूब के पास लौट के कहने लगे, "हम तेरे भाई एसाव के पास गए थे, और वह भी तुझ से भेंट करने को चार सौ पुरुष संग लिये हुए चला आता है ।" 7 तब याकूब बहुत डर गया, और संकट में पड़ा; और यह सोचकर अपने साथियों के, और भेड़-बकरियों के, और गाय-बैलों, और ऊँटों के भी अलग-अलग दो दल कर लिये, 8 कि यदि एसाव आकर पहले दल को मारने लगे, तो दूसरा दल भागकर बच जाएगा । 9 फिर याकूब ने कहा, "हे यहोवा, हे मेरे दादा अब्राहम के परमेश्वर, हे मेरे पिता इसहाक के परमेश्वर, तू ने तो मुझ से कहा था कि अपने देश और जन्मभूमि में लौट जा, और मैं तेरी भलाई करूंगा : 10 तू ने जो जो काम अपनी करुणा और सच्चाई से अपने दास के साथ किए हैं, कि मैं जो अपनी छड़ी ही लेकर इस यरदन नदी के पार उतर आया, और अब मेरे दो दल हो गए हैं; तेरे ऐसे ऐसे कामों में से मैं एक के भी योग्य तो नहीं हूँ । 11 मेरी विनती सुनकर मुझे मेरे भाई एसाव के हाथ से बचा : मैं तो उससे डरता हूँ, कहीं ऐसा न हो कि वह आकर मुझे और माँ समेत लड़कों को भी मार डाले । 12 तू ने तो कहा है कि मैं निश्चय तेरी भलाई करूंगा, और तेरे वंश को समुद्र की बालू के किनकों के समान बहुत करूंगा, जो बहुतायत के मारे गिने नहीं जा सकते ।" 13 उसने उस दिन रात वहीं बिताई और जो कुछ उसके पास था उसमें से अपने भाई एसाव की भेंट के लिये छाँट छाँटकर निकाला, 14 अर्थात् दो सौ बकरियाँ, और बीस बकरे, और दो सौ भेड़ें, और बीस मेढ़े, 15 और बच्चों समेत दूध देनेवाली तीस ऊँटनियाँ, और चालीस गायें, और दस बैल, और बीस गदहियाँ और उनके दस बच्चे । 16 इनको उसने झुण्ड झुण्ड करके, अपने दासों को सौंपकर उनसे कहा, "मेरे आगे बढ़ जाओ; और झुण्डों के बीच बीच में अन्तर रखो । 17 फिर उसने अगले झुण्ड के रखवाले को यह आज्ञा दी, जब मेरा भाई एसाव तुझे मिले, और पूछने लगे, 'तू किसका दास है, और कहाँ जाता है, और ये जो तेरे आगे आगे हैं, वे किसके हैं ?" 18 तब कहना, 'यह तेरे दास याकूब के हैं । हे मेरे प्रभु एसाव, ये भेंट के लिये तेरे पास भेजे गए हैं, और वह आप भी हमारे पीछे-पीछे आ रहा है'। " 19 और उसने दूसरे और तीसरे रखवालों को भी, वरन् उन सभों को जो झुण्डों के पीछे-पीछे थे ऐसी ही आज्ञा दी कि जब एसाव तुम को मिले तब इसी प्रकार उससे कहना । 20 और यह भी कहना, “तेरा दास याकूब हमारे पीछे-पीछे आ रहा है ।" क्योंकि उसने यह सोचा कि यह भेंट जो मेरे आगे आगे जाती है, इसके द्वारा मैं उसके क्रोध को शान्त करके तब उसका दर्शन करूँगा; हो सकता है वह मुझ से प्रसन्न हो जाए । 21 इसलिये वह भेंट याकूब से पहले पार उतर गई, और वह आप उस रात को छावनी में रहा ।
इसहाक के जन्म की प्रतिज्ञा, सदोम आदि नगरों के विनाश का वर्णन
अब्राहम के परीक्षा में पड़ने का वर्णन, नाहोर के वंशज
सारा की मृत्यु और अन्तक्रिया का वर्णन
इसहाक का गरार में निवास, इसहाक और अबीमेलेक के बीच सन्धि
याकूब का मल्लयुद्ध, याकूब और एसाव का मिलन


Post a Comment