आशीर्वाद के लिए एसाव की याचना, याकूब का लाबान के पास जाना, एसाव का एक और विवाह, याकूब का स्वप्न(Esau's Prayer for Blessings, Jacob's Visit to Laban, Esau's Another Marriage, Jacob's Dream)
आशीर्वाद के लिए एसाव की याचना:-
30 जैसे ही यह आशीर्वाद इसहाक याकूब को दे चुका, और याकूब अपने पिता इसहाक के सामने से निकला ही था, कि एसाव अहेर लेकर आ पहुँचा । 31 तब वह भी स्वादिष्ट भोजन बनाकर अपने पिता के पास ले आया, और उससे कहा, “हे मेरे पिता, उठकर अपने पुत्र के अहेर का मांस खा, ताकि मुझे जी से आशीर्वाद दे ।" 32 उसके पिता इसहाक ने पूछा, “तू कौन है ?” उसने कहा, “मैं तेरा जेठा पुत्र एसाव हूँ ।" 33 तब इसहाक ने अत्यन्त थरथर काँपते हुए कहा, "फिर वह कौन था जो अहेर करके मेरे पास ले आया था, और मैं ने तेरे आने से पहले सब में से कुछ कुछ खा लिया और उसको आशीर्वाद दिया? अब उसको आशीष लगी भी रहेगी ।" 34 अपने पिता की यह बात सुनते ही एसाव ने अत्यन्त ऊँचे और दुःख भरे स्वर से चिल्लाकर अपने पिता से कहा, "हे मेरे पिता, भी आशीर्वाद दे!" 35 उसने कहा, “तेरा भाई धूर्तता से आया, और तेरे आशीर्वाद को ले के चला गया ।" 36 उसने कहा, "क्या उसका नाम याकूब यथार्थ नहीं रखा गया? उसने मुझे दो बार अड़ंगा मारा । मेरा पहिलौठे का अधिकार तो उसने ले ही लिया था; और अब देख, उसने मेरा आशीर्वाद भी ले लिया है ।" फिर उसने कहा, “क्या तू ने मेरे लिये भी कोई आशीर्वाद नहीं सोच रखा है? 37 इसहाक ने एसाव को उत्तर देकर कहा, "सुन, मैं ने उसको तेरा स्वामी ठहराया, और उसके सब भाइयों को उसके अधीन कर दिया, और अनाज और नया दाखमधु देकर उसको पुष्ट किया है । इसलिये अब, हे मेरे पुत्र, मैं तेरे लिये क्या करूँ?" 38 एसाव ने अपने पिता से कहा, "हे मेरे पिता, क्या तेरे मन में एक ही आशीर्वाद है? हे मेरे पिता, मुझ को भी आशीर्वाद दे ।" यों कहकर एसाव फूट फूटके रोया । 39 उसके पिता इसहाक ने उससे कहा, "सुन, तेरा निवास उपजाऊ भूमि से दूर हो, और ऊपर से आकाश की ओस उस पर न पड़े । 40 तू अपनी तलवार के बल से जीवित रहे, और अपने भाई के अधीन तो हो; पर जब तू स्वाधीन हो जाएगा, तब उसके जूए को अपने कन्धे पर से तोड़ फेंके' ।' 41 एसाव ने तो याकूब से अपने पिता के दिए हुए आशीर्वाद के कारण बैर रखा; और उसने सोचा, "मेरे पिता के अन्तकाल का दिन निकट है, फिर मैं अपने भाई याकूब को घात करूँगा ।" 42 जब रिबका को उसके पहिलौठे पुत्र एसाव की ये बातें बताई गई, तब उसने अपने छोटे पुत्र याकूब को बुलाकर कहा, "सुन, तेरा भाई एसाव तुझे घात करने के लिये अपने मन में धीरज रखे हुए है । 43 इसलिये अब, हे मेरे पुत्र, मेरी सुन, और हारान को मेरे भाई लाबान के पास भाग जा; 44 और थोड़े दिन तक, अर्थात् जब तक तेरे भाई का क्रोध न उतरे तब तक उसी के पास रहना । 45 फिर जब तेरे भाई का क्रोध तुझ पर से उतरे, और जो काम तू ने उस से किया है उसको वह भूल जाए; तब मैं तुझे वहाँ से बुलवा भेजूँगी । ऐसा क्यों हो कि एक ही दिन में मुझे तुम दोनों से रहित होना पड़े?
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| आशीर्वाद के लिए एसाव की याचना |
याकूब का लाबान के पास जाना:-
1 फिर रिबका ने इसहाक से कहा, "हित्ती लड़कियों के कारण मैं अपने प्राण से घिन करती हूँ: इसलिये यदि ऐसी हित्ती लड़कियों में से, जैसी इस देश की लड़कियाँ हैं, याकूब भी एक से कहीं विवाह कर ले, तो मेरे जीवन में क्या लाभ होगा? ” तब इसहाक ने याकूब को बुलाकर आशीर्वाद दिया, और आज्ञा दी, 'तू किसी कनानी लड़की से विवाह न कर लेना । 2 पद्दनराम में अपने नाना बतूएल के घर जाकर, वहाँ अपने मामा लाबान की एक बेटी से विवाह कर लेना । 3 सर्वशक्तिमान ईश्वर तुझे आशीष दे, और फलवन्त कर के बढ़ाए, और तू राज्य राज्य की मण्डली का मूल हो । 4 वह तुझे और तेरे वंश को भी अब्राहम की सी आशीष दे, कि तू यह देश जिसमें तू परदेशी होकर रहता है, और जिसे परमेश्वर ने अब्राहम को दिया था, उसका अधिकारी हो जाए । " 5 और इसहाक ने याकूब को विदा किया, और वह पद्दनराम को अरामी बतूएल के पुत्र लाबान के पास चला, जो के याकूब और एसाव की माता रिबका का भाई था ।
एसाव का एक और विवाह:-
6 जब इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद देकर पद्दनराम भेज दिया, कि वह वहीं से पत्नी लाए, और उसको आशीर्वाद देने के समय यह आज्ञा भी दी, "तू किसी कनानी लड़की से विवाह न कर लेना, " 7 और याकूब माता-पिता की मानकर पद्दनराम को चल दिया। 8 तब एसाव यह सब देख के और यह भी सोचकर कि कनानी लड़कियाँ मेरे पिता इसहाक को बुरी लगती हैं, 9 अब्राहम के पुत्र इश्माएल के पास गया, और इश्माएल की बेटी महलत को, जो नबायोत की बहिन थी, व्याहकर अपनी पत्नियों में मिला लिया ।
याकूब का स्वप्न:-
10 याकूब बेर्शेबा से निकलकर हारान की ओर चला । 11 और उसने किसी स्थान में पहुँचकर रात वहीं बिताने का विचार किया, क्योंकि सूर्य अस्त हो गया था; इसलिये उसने उस स्थान के पत्थरों में से एक पत्थर ले अपना तकिया बनाकर रखा, और उसी स्थान में सो गया । 12 तब उसने स्वप्न में क्या देखा, कि एक सीढ़ी पृथ्वी पर खड़ी है, और उसका सिरा स्वर्ग तक पहुँचा है; और परमेश्वर के दूत उस पर से चढ़ते उतरते हैं । 13 और यहोवा उसके ऊपर खड़ा होकर कहता है, "मैं यहोवा, तेरे दादा अब्राहम का परमेश्वर, और इसहाक का भी परमेश्वर हूँ जिस भूमि पर तू लेटा है, उसे मैं तुझ को और तेरे वंश को दूंगा । 14 और तेरा वंश भूमि की धूल के किनकों के समान बहुत होगा, और पश्चिम, पूरब, उत्तर, दक्षिण, चारों ओर फैलता जाएगा: और तेरे और तेरे वंश के द्वारा पृथ्वी के सारे कुल आशीष पाएँगे । 15 और सुन, मैं तेरे संग रहूँगा, और जहाँ कहीं तू जाए वहाँ तेरी रक्षा करूँगा, और तुझे इस देश में लौटा ले आऊँगा : मैं अपने कहे हुए को जब तक पूरा न कर लूँ तब तक तुझ को न छोडूंगा ।" 16 तब याकूब जाग उठा, और कहने लगा, ''निश्चय इस स्थान में यहोवा है, और मैं इस बात को न जानता था ।" 17 और भय खाकर उसने कहा, "यह स्थान क्या ही भयानक है । यह तो परमेश्वर के भवन को छोड़ और कुछ नहीं हो सकता; वरन् यह स्वर्ग का फाटक ही होगा ।" 18 भोर को याकूब उठा, और अपने तकिए का पत्थर लेकर उसका खम्भा खड़ा किया, और उसके सिरे पर तेल डाल दिया । 19 उसने उस स्थान का नाम बेतेल रखा; पर उस नगर का नाम पहले लूज था । 20 तब याकूब ने यह मन्नत मानी, “यदि परमेश्वर मेरे संग रहकर इस यात्रा में मेरी रक्षा करे, और मुझे खाने के लिये रोटी, और पहिनने के लिये कपड़ा दे, 21 और मैं अपने पिता के घर में कुशल क्षेम से लौट आऊँ; तो यहोवा मेरा परमेश्वर ठहरेगा । 22 और यह पत्थर, जिसका मैं ने खम्भा खड़ा किया है, परमेश्वर का भवन ठहरेगा और जो कुछ तू मुझे दे उसका दशमांश मैं अवश्य ही तुझे दिया करूँगा ।"
इसहाक के जन्म की प्रतिज्ञा, सदोम आदि नगरों के विनाश का वर्णन
अब्राहम के परीक्षा में पड़ने का वर्णन, नाहोर के वंशज
सारा की मृत्यु और अन्तक्रिया का वर्णन
इसहाक का गरार में निवास, इसहाक और अबीमेलेक के बीच सन्धि


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