अकाल और यूसुफ का प्रबन्ध, याकूब की अन्तिम इच्छा (Famine and Joseph's Provision, Jacob's Last Will)
अकाल और यूसुफ का प्रबन्ध:-
13 उस सारे देश में खाने को कुछ न रहा; क्योंकि अकाल बहुत भारी था, और अकाल के कारण मिस्र और कनान दोनों देश त्रस्त हो गए । 14 और जितना रुपया मिस्र और कनान देश में था, सबको यूसुफ ने उस अन्न के बदले, जो उनके निवासी मोल लेते थे, इकट्ठा करके फ़िरौन के भवन में पहुँचा दिया । 15 जब मिस्र और कनान देश का रुपया समाप्त हो गया, तब सब मिस्त्री यूसुफ के पास आ आकर कहने लगे, "हम को भोजनवस्तु दे; क्या हम रुपये के न रहने से तेरे रहते हुए मर जाएँ ?" 16 यूसुफ ने कहा, "यदि रुपये न हों तो अपने पशु दे दो, और मैं उनके बदले तुम्हें खाने को दूँगा ।” 17 तब वे अपने पशु यूसुफ के पास ले आए; और यूसुफ उनको घोड़ों, भेड़-बकरियों, गाय बैलों और गदहों के बदले खाने को देने लगा: उस वर्ष में वह सब जाति के पशुओं के बदले भोजन देकर उनका पालन-पोषण करता रहा।
18 वह वर्ष तो यों कट गया; तब अगले वर्ष में उसके पास आकर कहा, "हम अपने प्रभु से यह बात छिपा न रखेंगे कि हमारा रुपया समाप्त हो गया है, और हमारे सब प्रकार के पशु हमारे प्रभु के पास आ चुके हैं; इसलिये अब हमारे प्रभु के हमारे शरीर और भूमि छोड़कर और कुछ नहीं रहा । 19 हम तेरे देखते क्यों मरें, और हमारी भूमि क्यों उजड़ जाए? हमको और हमारी भूमि को भोजन वस्तु के बदले मोल ले, कि हम अपनी भूमि समेत फिरौन के दास हों और हमको बीज दे कि हम मरने न पाएँ, वरन् जीवित रहें, और भूमि न उजड़े । " 20 तब यूसुफ ने मिस्र की सारी भूमि को फ़िरौन के लिये मोल लिया: क्योंकि उस भयंकर अकाल के पड़ने से मिस्त्रियों को अपना अपना खेत बेच डालना पड़ा । इस प्रकार सारी भूमि फिरौन की हो गई; 21 और एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक सारे मित्र देश में जो प्रजा रहती थी, उसको उसने नगरों में लाकर बसा दिया । 22 पर याजकों की भूमि उसने न मोल ली; क्योंकि याजकों के लिये फिरौन की ओर से नित्य भोजन का बन्दोबस्त था, और नित्य जो भोजन फिरौन उनको देता था वही वे खाते थे, इस कारण उनको अपनी भूमि बेचनी न पड़ी । 23 तब यूसुफ ने प्रजा के लोगों से कहा, "सुनो, मैं ने आज के दिन तुम को और तुम्हारी भूमि को भी फ़िरौन के लिये मोल लिया है; देखो, तुम्हारे लिये यहाँ बीज है, इसे भूमि में बोओ । 24 और जो कुछ उपजे उसका पंचमांश फिरौन को देना, बाकी चार अंश तुम्हारे रहेंगे कि तुम उसे अपने खेतों में बोओ, और अपने अपने बालबच्चों और घर के अन्य लोगों समेत खाया करो । 25 उन्होंने कहा, "तू ने हमको बचा लिया है; हमारे प्रभु के अनुग्रह की दृष्टि हम पर बनी रहे, और हम फिरौन के दास होकर रहेंगे ।” 26 इस प्रकार यूसुफ ने मिस्र की भूमि के विषय में ऐसा नियम ठहराया, जो आज के दिन तक चला आता है कि पंचमांश फिरौन को मिला करे; केवल याजकों ही की भूमि फ़िरौन की नहीं हुई ।
याकूब की अन्तिम इच्छा:-
27 इस्त्राएली मिस्र के गोशेन प्रदेश में रहने लगे; और वहाँ की भूमि उनके वश में थी; और वे फूले-फले, और अत्यन्त बढ़ गए । 28 मिस्त्र देश में याकृव सत्रह वर्ष जीवित रहा: इस प्रकार याकूब की सारी आयु एक सौ सैंतालीस वर्ष की हुई । 29 जब इस्राएल के मरने का दिन निकट आ गया, तब उसने अपने पुत्र यूसुफ को बुलवाकर कहा, "यदि तेरा अनुग्रह मुझ पर हो, तो अपना हाथ मेरी जाँघ के नीचे रखकर शपथ खा कि तू मेरे साथ कृपा और सच्चाई का यह काम करेगा कि मुझे मिस्र में मिट्टी न देगा । 30 जब मैं अपने बापदादों के संग सो जाऊँगा, तब तू मुझे मिस्र से उठा ले जाकर उन्हीं के कब्रिस्तान में रखेगा ।' तब यूसुफ ने कहा, "मैं तेरे वचन के अनुसार करूँगा ।" 31 फिर उसने कहा, "मुझ से शपथ से खा ।'' अतः उसने उससे शपथ खाई। तब इस्राएल ने खाट के सिरहाने की ओर सिर झुकाकर प्रार्थना की ।
इसहाक के जन्म की प्रतिज्ञा, सदोम आदि नगरों के विनाश का वर्णन
अब्राहम के परीक्षा में पड़ने का वर्णन, नाहोर के वंशज
सारा की मृत्यु और अन्तक्रिया का वर्णन
इसहाक का गरार में निवास, इसहाक और अबीमेलेक के बीच सन्धि
याकूब का मल्लयुद्ध, याकूब और एसाव का मिलन
बेतेल में याकूब को आशीष मिलना, राहेल की मृत्यु, याकूब के पुत्र, इसहाक की मृत्यु
बन्दियों के स्वप्नों का अर्थ बताना
बिन्यामीन के साथ मिस्त्र देश जाना
याकूब और उसका परिवार मिस्र में
याकूब का एप्रैम और मनश्शे को आशीर्वाद देना


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