याकूब और उसका परिवार मिस्र में (Jacob and his family in Egypt) - YISHU KA SANDESH

याकूब और उसका परिवार मिस्र में (Jacob and his family in Egypt)

याकूब और उसका परिवार मिस्र में:- 

                            28 फिर उसने यहूदा को अपने आगे यूसुफ के पास भेज दिया कि वह उसको गोशेन का मार्ग दिखाए; और वे गोशेन देश में आए । 29 तब यूसुफ अपना रथ जुतवाकर अपने पिता इस्राएल से भेंट करने के लिये गोशेन देश को गया, और उससे भेंट करके उसके गले से लिपटा, और बहुत देर तक उसके गले से लिपटा हुआ सेता रहा । 30 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, “मैं अब मरने से भी प्रसन्न हूँ, क्योंकि तुझे जीवित पाया और तेरा मुँह देख लिया ।” 31 तब यूसुफ ने अपने भाइयों से और अपने पिता के घराने से कहा, "मैं जाकर फिरौन को यह कहकर समाचार दूँगा, 'मेरे भाई और मेरे पिता के सारे घराने के लोग, जो कनान देश में रहते थे, वे मेरे पास आ गए हैं; 32 और वे लोग चरवाहे हैं क्योंकि वे पशुओं को पालते आए हैं; इसलिये वे अपनी भेड़-बकरी, गाय बैल, और जो कुछ उनका है, सब ले आए हैं।' 33 जब फिरौन तुम को बुला के पूछे, 'तुम्हारा उद्यम क्या है ?' 34 तब यह कहना, 'तेरे दास लड़कपन से लेकर आज तक पशुओं को पालते आए हैं, वरन् हमारे पुरखा भी ऐसा ही करते थे ।' इससे तुम गोशेन देश में रहने पाओगे, क्योंकि सब चरवाहों से मिस्त्री लोग घृणा करते हैं ।" 


1 तब यूसुफ ने फिरौन के पास जाकर यह समाचार दिया, "मेरा पिता और मेरे भाई, और उनकी भेड़-बकरियाँ, और जो कुछ उनका है, सब कनान देश से आ गया है; और अभी तो वे गोशेन देश में हैं ।" 2 फिर उसने अपने भाइयों में से पाँच जन लेकर फिरौन के सामने खड़े कर दिए । 3 फिरौन ने उसके भाइयों से पूछा, “तुम्हारा उद्यम क्या है ?" उन्होंने फ़िरौन से कहा, "तेरे दास चरवाहे हैं, और हमारे पुरखा भी ऐसे ही रहे ।" 4 फिर उन्होंने फिरौन से कहा, "हम इस देश में परदेशी की भाँति रहने के लिये आए हैं, क्योंकि कनान देश में भारी अकाल होने के कारण तेरे दासों को भेड़-बकरियों के लिये चारा न रहा; इसलिये अपने दासों को गोशेन देश में रहने की आज्ञा दे ।" 5 तब फिरौन ने यूसुफ से कहा, "तेरा पिता और तेरे भाई तेरे पास आ गए हैं, 6 और मिस्र देश तेरे सामने पड़ा है; इस देश का जो सब से अच्छा भाग हो, उसमें अपने पिता और भाइयों को बसा दे, अर्थात् वे गोशेन ही देश में रहें; और यदि तू जानता हो, कि उनमें से परिश्रमी पुरुष हैं, तो उन्हें मेरे पशुओं के अधिकारी ठहरा दे ।" 7 तब यूसुफ ने अपने पिता याकूब को ले आकर फिरौन के सम्मुख खड़ा किया; और याकूब ने फिरौन को आशीर्वाद दिया । 8 तब फिरौन ने से याकूब से पूछा, "तेरी आयु कितने दिन की हुई है ?" 9 याकूब ने फिरौन से कहा, "मैं एक सौ तीस वर्ष परदेशी होकर अपना जीवन बिता चुका हूँ; मेरे जीवन के दिन थोड़े और दुःख से भरे हुए ने भी थे, और मेरे बापदादे परदेशी होकर जितने दिन तक जीवित रहे उतने दिन का मैं अभी नहीं हुआ ।" 10 और याकूब फिरौन को आशीर्वाद देकर उसके सम्मुख से चला गया । 11 तब यूसुफ ने अपने पिता और भाइयों को बसा दिया, और फ़िरौन की आज्ञा के अनुसार मिस्र देश के अच्छे से अच्छे भाग में, अर्थात् रामसेस नामक प्रदेश में, भूमि देकर उनको सौंप दिया । 12 और यूसुफ अपने पिता का, और अपने भाइयों का, और पिता के सारे घराने का, एक एक के बालबच्चों की गिनती के अनुसार, भोजन दिला दिलाकर उनका पालन-पोषण करने लगा ।

    जय मसीह की । || कविता पोरिया   

Read this also

परमेश्वर की ओर से अब्राम के बुलाए जाने का वर्णन:

इसहाक के जन्म की प्रतिज्ञा, सदोम आदि नगरों के विनाश का वर्णन


अब्राहम के परीक्षा में पड़ने का वर्णन, नाहोर के वंशज

सारा की मृत्यु और अन्तक्रिया का वर्णन

इसहाक के विवाह का वर्णन

इसहाक का गरार में निवास, इसहाक और अबीमेलेक के बीच सन्धि



याकूब की सन्तान

याकूब का मल्लयुद्ध, याकूब और एसाव का मिलन

दीना को भ्रष्ट किया जाना

बेतेल में याकूब को आशीष मिलना, राहेल की मृत्यु, याकूब के पुत्र, इसहाक की मृत्यु



बन्दियों के स्वप्नों का अर्थ बताना


बिन्यामीन के साथ मिस्त्र देश जाना



याकूब और उसका परिवार मिस्र में

कोई टिप्पणी नहीं

If you have any doubt, please let me know.

कमजोरी ही शक्ति ।

कमजोरी ही शक्ति:- =================================                         वो बड़े इत्मीनान से गुरु के सामने खड़ा था । गुरु अपनी पारखी नजर ...

Blogger द्वारा संचालित.