मनुष्य के पापी हो जाने का वर्णन (description of man's sin)
यहोवा परमेश्वर ने जितने बनैले पशु बनाए थे, उन सब में सर्प धूर्त था; * उसने स्त्री से कहा, "क्या सच है कि परमेश्वर ने कहा, 'तुम इस वाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना? ??? 2 स्त्री ने सर्प से कहा, "इस वाटिका के वृक्षों के फल हम खा सकते हैं 3 पर जो वृक्ष वाटिका के बीच में है, उसके फल के विषय में परमेश्वर ने कहा है कि न तो तुम उसको खाना और न उसको छूना, नहीं तो मर जाओगे ।" 4 तब सर्प ने स्त्री से कहा, "तुम निश्चय न मरोगे! 5 वरन परमेश्वर आप जानता है कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे । " 6 अतः जब स्त्री ने देखा कि उस वृक्ष का फल खाने के लिए अच्छा, और देखने में मनभाऊ, और बुद्धि देने के लिये चाहनेयोग्य भी है, तब उसने उसमें से तोड़कर खाया, और अपने पति को भी दिया, और उसने भी खाया । 7 तब उन दोनों की आँखें खुल गईं, और उनको मालूम हुआ कि वे नंगे हैं; इसलिए उन्होंने अंजीर के पत्ते जोड़ जोड़ कर लंगोट बना लिये । 8 तब यहोवा परमेश्वर, जो दिन के ठंडे समय वाटिका में फिरता था, का शब्द उनको सुनाई दिया । तब आदम और उसकी पत्नी वाटिका के वृक्षों के बीच यहोवा परमेश्वर से छिप गए। 9 तब यहोवा परमेश्वर ने पुकारकर आदम से पूछा, "तू कहाँ है ?" 10 उसने कहा, "मैं तेरा शब्द बारी में सुनकर डर गया, क्योंकि मैं नंगा "था; इसलिये छिप गया।" 11 उसने कहा, ““किसने तुझे बताया कि तू नंगा है ? जिस वृक्ष तू का फल खाने को मैं ने तुझे मना किया था, क्या तुमने उसका माला खाया है 12 आदम ने कहा, "जिस स्त्री को तू चे मेरे संग रहने को दिया है उसी ने उस वृक्ष का फल मुझे दिया, और मैं ने खाया। "13 तब यहोवा परमेश्वर ने स्त्री से कहा, "तू ने यह क्या किया है ?" स्त्री ने कहा, "सर्प ने मुझे बहका दिया, तब मैं ने खाया ।'
परमेश्वर का न्याय:-
14 तब यहोवा परमेश्वर ने सर्प से कहा, "तू ने जो यह किया है इसलिये तू सब घरेलू पशुओं, और सब बनैले पशुओं से अधिक शापित है; तू पेट के बल चला करेगा, और जीवन भर मिट्टी चाटता रहेगा : 15 और मैं तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्न करूँगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा। "16 फिर स्त्री से उसने कहा, "मैं तेरी पीड़ा और तेरे गर्भवती होने के दुःख को बहुत बढ़ाऊँगा; तू पीड़ित होकर बालक उत्पन्न करेगी; और तेरी लालसा तेरे पति की ओर होगी, और वह तुझ पर प्रभुता करेगा।" 17 और आदम से उसने कहा, "तू ने जो अपनी पत्नी की बात सुनी और जिस वृक्ष के फल के विषय मैं ने तुझे आज्ञा दी थी कि तू उसे न खाना, उसको तू ने खाया है इसलिये भूमि तेरे कारण शापित है । तू उसकी उपज जीवन भर दु:ख के साथ खाया करेगा; 18 और वह तेरे लिये काँटे और ऊँटकटारे उगाएगी, और तू खेत की उपज खाएगा; * 19 और अपने माथे के पसीने की रोटी खाया करेगा, और अन्त में मिट्टी में मिल जाएगा क्योंकि तू उसी में से निकाला गया है; तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा । "20 आदम ने अपनी पत्नी का नाम हव्वा * रखा; क्योंकि जितने मनुष्य जीवित हैं उन सब की आदिमाता वही हुई। 21 और यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिये चमड़े के अँगरखे बनाकर उनको पहिना दिए ।
वाटिका से निकाला जाना:-
22 फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, "मनुष्य भले बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है : इसलिये अब ऐसा न हो कि वह हाथ बढ़ाकर जीवन के वृक्ष का फल भी तोड़ के खा ले और सदा जीवित रहे।" 23 इसलिये यहोवा परमेश्वर ने उसको अदन की वाटिका में से निकाल दिया कि वह उस भूमि पर खेती करे जिस में से वह बनाया * गया था । 24 इसलिये आदम को उसने निकाल दिया और जीवन के वृक्ष के मार्ग का पहरा देने के लिये अदन की वाटिका के पूर्व की ओर करूबों को, और चारों ओर घूमनेवाली ज्वालामय तलवार को भी नियुक्त कर दिया ।
कैन और हाबिल:-
4 जब आदम अपनी पत्नी हव्वा के पास गया तब उस ने गर्भवती होकर कैन को जन्म दिया और कहा, 'मैं ने यहोवा की सहायता से एक पुरुष पाया है ।" 2 फिर उसने उसके भाई हाबिल को भी जन्म दिया । हाबिल भेड़-बकरियों का चरवाहा बन गया, परन्तु कैन भूमि पर खेती करने वाला किसान बना । 3 कुछ दिनों के पश्चात् कैन यहोवा के पास भूमि की उपज में से कुछ भेंट ले आया, 4 और हाबिल भी अपनी भेड़ बकरियों के कई एक पहिलौठे बच्चे भेंट चढ़ाने ले आया और उनकी चर्बी भेंट चढ़ाई; तब यहोवा ने हाबिल और उसकी भेंट को तो ग्रहण किया, * 5 परन्तु कैन और उसकी भेंट को उसने ग्रहण ने किया । तब कैन अति क्रोधित हुआ, और उसके मुँह पर उदासी छा गई। 6 तब यहोवा ने कैन से कहा, "तू क्यों क्रोधित हुआ? और तेरे मुँह पर उदासी क्यों छा गई है? 7 यदि तू भला करे, तो क्या तेरी भेंट ग्रहणं न की जाएगी? और यदि तू भला न करे, तो पाप द्वार पर छिपा रहता है, और उसकी लालसा तेरी ओर होगी, और तुझे उस पर प्रभुता करनी है ।" 8 तब कैन ने अपने भाई हाबिल से कुछ कहा ; और जब वे मैदान में थे, तब कैन ने अपने भाई हाबिल पर चढ़कर उसे घात किया; 9 तब यहोवा ने कैन से पूछा, "तेरा भाई हाबिल कहाँ है ?” उसने कहा, "मालूम नहीं; क्या मैं अपने भाई का रखवाला हूँ ?" 10 उसने कहा, "तू ने क्या किया है? तेरे भाई का लहू भूमि से मेरी ओर चिल्लाकर मेरी दोहाई दे रहा है!* 11 इसलिये अब भूमि जिसने तेरे भाई का लहू तेरे हाथ से पीने के लिये अपना मुँह खोला है, उसकी ओर से तू शापित है। 12 चाहे तू भूमि पर खेती करे, तौभी उसकी पूरी उपज फिर तुझे न मिलेगी;* और तू पृथ्वी पर भटकनेवाला और भगोड़ा होगा ।" 13 तब कैन ने यहोवा से कहा," मेरा दण्ड सहने से बाहर है । 14 देख, तू ने * आज के दिन मुझे भूमि पर से निकाला है, और मैं तेरी दृष्टि की आड़ में रहूँगा, और पृथ्वी पर भटकनेवाला और भगोड़ा रहूँगा; और जो कोई मुझे पाएगा, मुझे घात करेगा ।" 15 इस कारण यहोवा ने उस से कहा, "जो कोई कैन को घात करेगा उस से सात गुणा बदला लिया जाएगा और यहोवा ने कैन के लिये एक चिह्न ठहराया ऐसा न हो कि कोई उसे पाकर मार डाले ।


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