बंद मुट्ठी खुली मुट्ठी ।
बंद मुट्ठी खुली मुट्ठी
एक व्यक्ति के दो पुत्र थे. दोनों का स्वभाव एक-दूसरे के विपरीत था. एक बहुत कंजूस था, तो दूसरा फ़िज़ूलखर्च. पिता उनके इस स्वभाव से परेशान था. उसने कई बार उनको समझाया. लेकिन उन्होंने अपना स्वभाव नहीं बदला.
एक दिन पिता को पता चला कि उनके गाँव में एक सिद्ध महात्मा पधारे हैं. वह उनके पास इस आस में पहुँच गया कि शायद वो उसके पुत्रों को समझा सके.
महात्मा को उसने पूरी बात बताई, जिसे सुनकर महात्मा ने कहा, “अपने पुत्रों को कल मेरे पास लेकर आना. मैं उनसे बात करूंगा.”
अगले दिन वह अपने पुत्रों को लेकर महात्मा के पास पहुँचा. महात्मा ने दोनों पुत्रों को अपने पास बैठाया और अपने दोनों हाथों की मुठ्ठियाँ बंद कर उन्हें दिखाते हुए पूछा, “यदि मेरे हाथ ऐसे हो जायें, तो कैसा लगेगा?”
“लगेगा मानो आपको कोढ़ है.” दोनों पुत्रों ने एक साथ उत्तर दिया.
उसके बाद महात्मा ने अपनी मुठ्ठी खोल ली. फिर अपनी दोनों हथेली फैलाकर उन्हें दिखाते हुए प्रश्न किया, “यदि मेरे हाथ ऐसे हो जायें, तो बताओ कैसा लगेगा?”
“अब भी लगेगा कि आपको कोढ़ है.” दोनों पुत्रों ने उत्तर दिया.
उत्तर सुनकर महात्मा गंभीर हो गए और उन्हें समझाने लगे, “पुत्रों! अपनी मुठ्ठी सदा बंद रखना या सदा खुली रखना एक तरह का कोढ़ ही है. यदि मुठ्ठी सदा बंद रखोगे, तो धनवान होते हुए भी निर्धन ही रहोगे और यदि अपनी मुठ्ठी सदा खुली रखोगे, तो फिर चाहे कितने भी धनवान क्यों ना हो, निर्धन होते देर नहीं लगेगी. इसलिए कभी अपनी मुठ्ठी बंद रखो कभी खुली. इस तरह से जीवन का संतुलन बना रहेगा.”
पुत्रों को महात्मा की बात समझ में आ गई और उन्होंने निश्चय किया कि संतुलन बनाकर ही अपना धन खर्च करेंगे.
सीख:-
जीवन में धन का बहुत महत्व है. उसका खर्च सोच-समझकर करना चाहिए. अधिक कंजूसी भी ठीक नहीं और अधिक फ़िज़ूलखर्ची भी ठीक नहीं. दोनों ही दरिद्रता का संकेत हैं. एक धन होते हुए भी दरिद्रता और एक धन चले जाने की दरिद्रता. अतः ऐसे खर्च करें कि धन का संतुलन बना रहे.


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