ख़ुशी की तलाश ।
ख़ुशी की तलाश
एक बार सृष्टि के रचियता ब्रह्माजी ने मानवजाति के साथ एक खेल खेलने का निर्णय लिया. उन्होंने ख़ुशी को कहीं छुपा देने का मन बनाया, ताकि मानव उसे आसानी से प्राप्त न कर सके. ब्रह्माजी की सोच थी कि जब बहुत तलाश करने के बाद मानव ख़ुशी को ढूंढ निकलेगा, तब शायद वास्तव में ख़ुश हो पायेगा.
इस संबंध में मंत्रणा करने उन्होंने अपनी परामर्श-मंडली को बुलाया. जब परामर्श-मंडली उपस्थित हुई, तो ब्रह्माजी बोले, “मैं मानवजाति के साथ एक खेल खेलना चाहता हूँ. इस खेल में मैं ख़ुशी को ऐसे स्थान पर छुपाना चाहता हूँ, जहाँ से वह उसे आसानी से न मिल सके. क्योंकि आसानी से प्राप्त ख़ुशी का महत्व मानव नहीं समझता और पूरी तरह से ख़ुश नहीं होता. अब आप लोग मुझे परामर्श दें कि मैं ख़ुशी को कहाँ छुपाऊं.”
“इसे धरती की गहराई में छुपा देना उचित होगा.” पहला परामर्श आया.
“लेकिन मानव खुदाई कर आसानी से इसे प्राप्त कर लेगा.” ब्रह्माजी ने असहमति जताते हुए कहा.
“तो फिर इसे सागर की गहराई में छुपा देना अच्छा रहेगा.” एक परामर्श और आया.
“मानव सारे सागर छान मारेगा और ख़ुशी आसानी से ढूंढ निकलेगा. इसलिए ऐसा करना ठीक नहीं होगा.” ब्रह्माजी बोले.
बहुत से परामर्श सलाहकार मंडली ने दिए, लेकिन कोई ब्रह्माजी को जंचे नहीं.
काफ़ी सोच-विचार कर ब्रह्माजी एक निर्णय पर पहुँचे, जिससे परामर्श-मंडली भी सहमत थी. वह निर्णय था कि ख़ुशी को मानव के अंदर ही छुपा दिया जाये. वहाँ उसे ढूंढने के बारे में मानव कभी सोचता ही नहीं है. लेकिन यदि उसने वहाँ ख़ुशी ढूंढ ली, तो वह अपने जीवन में वास्तव में ख़ुश रहेगा.
सीख :-
हम अक्सर ख़ुशी को बाहर तलाशते रहते हैं, किंतु वास्तविक ख़ुशी हमारी भीतर ही है. आवश्यकता है उसे अपने भीतर तलाशने की ।
========================
========================


Post a Comment